रामू एक किसान था। इस साल पड़े सूखे ने उसके खेतों के साथ ही उसे भी सूखा दिया था, लेकिन वह हिम्मती और मेहनती था। आत्महत्या जैसा कायराना विचार भी उसके मन में नहीं आया और अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ शहर में रोजी रोटी की तलाश में आ गया।सड़क के किनारे एक झुग्गी बस्ती के नजदीक चार डंडे गाड कर उसपर चद्दर तानकर उसने अपना आशियाना बना लिया।शहर में आकर वह दिहाड़ी मजदूरी करने लगा। रोज काम भी नहीं मिल रहा था, फिर भी गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह घिसट रही थी। दिवाली फिकी ही रही