इश्क़ ए बिस्मिल - 16

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कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा गई थी। ज़मान साहब उसके जवाब के इंतजार में थे। अरीज की नज़र फ़र्श पर टिकी हुई थी। उसने सर उठाकर कहा था “मैं अपने बाबा से बहुत प्यार करती थी इसलिए नहीं के वह मेरे बाबा थे बल्कि इसलिए कि वह बहुत अच्छे इंसान थे। बहुत नर्म दिल थे और अपनी ज़ुबान के पक्के। वह कभी भी किसी बात पे वादा नहीं करते थे इसलिए नहीं कि वह निभा नहीं सकते थे बल्कि इसलिए कि उनकी आम लफ़्ज़ों में कहीं बात भी पत्थर की लकीर जैसी होती थी। अगर उन्होंने कुछ कह दिया