अध्याय 4 वैगई की बात को सुन कर दूसरे तरफ की वाणी सुब्रमणियम स्तंभित रह गई | “नहीं वैगई...! किसी से भी हमें किसी तरह की समस्या नहीं चाहिए | उस दयानिधि ट्रस्ट के लोगों ने रुपयों के मामले में जैसा करने को कहा है, वैसा ही करो | बेकार टकराना ठीक नहीं है...........” वैगई हंसी | “टकराहट तो होगी ही........ परंतु वह अहिंसा की टकराहट होगा ? “मैं नहीं समझी !” “मैडम........... ये समस्या मैं हेंडल कर लूँगी | उस पाँच लाख रुपयों को किस-किस काम में उपयोग में लेना है, आप लिस्ट बना कर रखना, बस |” “वैगई