बाबु-राही

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बाबु-राहीमंजिल की तलाशसन् 1970 की बात, माइग्रेशन आम बात थी,पॉच-दस जमात पढा-क नहीं पढा, जानाही पड़ता परदेश रोजगार की तलाश में ।मिटटी-आबो-हवा की तजवीज का फला है,या जीवन ओ जिने कसावट काफलसफा, यदि इससे आगे तो यह भी ठीकही रहेगा कि बेंटरमेंट आफ लाईफ, वैसेमारवाड़ में माईग्रेसन आम ही है, लाखोंकुरजा हिमालय के उस पार से आती भी तोहै, खास समझें तो ठीक ठाक यह जीवन हैजिसमें बेढगे पत्थरें को गढा जाता है,जीवन के खास कुछ पहलू भी जिसमेंआसानी से लडकपन में गाठ दी जाती है,वह किस और जायेगा,लकब जरूरी भी है,सरकारी नौकरी की ज्यादा मारामारी नहींप्रायः घृणा का भाव,