रहने वाली वो परी थी ख़्वाबों के शहर में, शहर में था उसका एक शीशे का महल। उस महल में देखा करती थी सतरंगी सपने, उसे क्या पता था सपने झूठे निकलेंगे सारे। हुआ यूँ कि एक दानव की नज़र पड़ गयीउस नाज़ुक सी परी पे, उसने तोड़ डाला एक ही वार में उसका वो शीश-महल, कर क़ैद उड़ चला उसे सोने के ज़िंदान में। बहुत हाथ- पैर मारती रही थी, रोई थी, चिल्लाई थी, सबसे गुहार भी लगाई थी, पर किसी ने बढ़ कर उसे बचाया नहीं था। सब मुस्कुरा रहे थे उसके शीश- महल केटूट जाने पर, उसके