बेमेल - 28

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....श्यामा को सामने खड़ा देख विजेंद्र के आंखों से पश्चातापरूपी आंसू चेहरे पर आ लुढ़के। उसकी धुंधली होती निगाहें जब श्यामा के गर्भ पर पड़ी तो सब्र का बांध टूट गया। “हे मां!! मैं गुनाहगार हूँ तेरा! हो सके तो ईश्वर से प्रार्थना करना कि मुझ जैसे दुराचारी को इस कीचड़रूपी शरीर से मुक्ति दे दे! मां!!” – विजेंद्र के मुंह से लड़खड़ाते हुए शब्द निकले फिर सदा के लिए शांत हो गए। श्यामा कुछ पल वहीं खड़ी उसे निहारती रही फिर बिना कुछ बोले मेडिकल कैम्प से बाहर निकल आयी। अपने प्राण त्यागकर आज विजेंद्र ने खुद के पापों