इश्क़ ए बिस्मिल - 11

  • 3.5k
  • 1.9k

तेरे अल्फ़ाज़ की चादर मैं ओढ़ूं और निचोड़ूं।यूं तिनका तिनका बिखरी हूंकिस तरह खुद को जोड़ू।तेरे अल्फ़ाज़ की चादर मैं ओढ़ूं और निचोड़ूं।काफ़ी रात हो गई थी मगर अरीज की निंद जैसे उड़न छू हो गई थी। दिल आज अलग ही लय में धड़क रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था यह थकावट की वजह से है या फ़िर किसी अनहोनी के होने का अंदेशा।उसने अपने बगल में सो रहे उमैर को देखा था, किसी सोते हुए बच्चे की तरह वह बेखबर था। उसके चेहरे पर हमेशा एक नूर सा रहता था, शायद यह नूर नेक होने की