अभिव्यक्ति.. - 4

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में नहीं चाहती,...      सीता जैसी महान बनकर, में जीना नहीं चाहती फसल की तरह धरती से में पैदा होना नहीं चाहती   औरत हू में बेबस नहीं, सिर झुकाना नहीं चाहती  कुर्बान होकर राजमहलका,  ताज बनना नहीं चाहती    बेइंसाफी देखकर में, चूप रहेना नहीं चाहती  दिया वचन जो ससुरने में, उसे निभाना नहीं चाहती   राजा है तो क्या हुआ में हिस्सेदारी नहीं चाहती अपने पतिसे जुदा होकरके मै जीना नहीं चाहती      किसी और के प्रतिशोध से बंदी होना नहीं चाहती  बेवजह में महासंग्राम की वजह बनना नहीं चाहती    महल नहीं तो ना सही, जंगल मे कुटिया नहीं चाहती    बेघर