उन्नती

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“सत्य को अपने ही जिस्म में ऐसी जगह छुपाते है कि, वह किसी को नजर न आये और अगर जिस्म टटोला भी जाये तब भी उसके होने का एहसास न हो. उपर से असत्य के इतने कपडे, गहने और मेकअप करते है कि, देखने वाले बस उसकी चकाचौंध में ही गुम हो जाये. सत्य को ढुंढने की कोश‍िश भी न करे. आज यहाँ हर इन्सान कुछ इसी तरह से जी रहा है, हर कोई… हर कोई…!” पुल‍िस स्टेशन के लॉकअप में सलाखों के पीछे बदहवास सी अपने ही पैरों के घुटनों पर अपना स‍िर टिकाकर दोनों हाथों से अपने पैरों