दुधिया सब संसार भरी दुपहरी मई की तपिष में व्यापारी खिलोने टोपिया के गठर में बांधे पीठ लादा गली मुहल्ले में घूम घूम बेचना चाह रहा था । आदमी तो है थक हार कर बड़ें से बरगद को देख कर सुस्ताने की चाह हुई । एक और गठरा रखा और जुते सिरहाने डाल लेट सा गया, थका हारा पसीने से तरबतर कब नींद की आगोष में समाया पता ही नहीं चला । खैर जम्माई अर्द्धनिद्राधारण गाफिल सा उठा और गठर को सहीसाट सा करने लगा परन्तु खिलोने टापिया आधे से कम और बचा बिखरा,उलटपुलट भर पड़ा! यह सोचने और अचंभिंत