नए आगंतुक

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नए आगंतुकशाम ढल रही थी। सभी वृक्ष आपस में क्षेमकुशल पूछते सान्निध्य का आनंद ले रहे थे। “तेरे पर खिला फूल किसी मानव स्त्री के ज़ुडे में पिरोया हो ऐसी शोभा देता है। तेरी ये मादक सुगंध! मार डाला मुझे। तेरे बदन से फूटती ये खुशबू का क्या कहूं मेरी प्राण प्यारी?“ कड़ीपत्ते ने अपने बगल में खड़ी जसुद को बताया। "हाँ, लेकिन हम कहते हैं कि कड़ीपत्ताजी, हमारे मकान मालिक ने घर बदल दिया। जातेजाते हम से बात भी करते गए और कहते गए की ”फूलो फलो। हमें याद रखना।” आप साथ जीते हैं, आप मुझसे बात करते हैं