अथगूँगे गॉंव की कथा - 2

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उपन्यास-   रामगोपाल भावुक                              अथगूँगे गॉंव की कथा 2                अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति   उनकी ये बातें सुनकर मौजी की होली ढीली पड़ गई। अपराधी की भाँति उनके सामने खड़े होकर बोला-‘महाते, खेतन्नों पहुँचत में दानास की बेर हो जायगी।’          वे बोले-‘तुम्हें दानास की परी है। जही खेती-बाड़ी से सब अच्छे लगतयें। जही से सबैय बड़ी-बड़ी बातें आतें।’         मौजी समझ गया कि ये काम पर पहुँचा कर ही रहेंगे,बोला-‘महाते, आज चाहें कछू कह लेऊ, आज तो नहीं चल सकत।’         यह सुनकर महाते गुस्से में आ गये, बोले-‘तो हमाओ हिसाब कर