अपंग - 44

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44 ----- भानुमति ने उसके सिर पर फिर से हाथ फेरा और बाहर निकल आई | लाखी वहीं खड़ी रह गई थी | रिवाज़ के अनुसार वह बाहर नहीं आ सकती थी | जैसे ही वह बाहर निकली, देखा कुछ औरतें बरामदे में खड़ी हुई फुसफुस कर रहीं थीं | उसे देखते ही वे तितर-बितर होने लगीं | लाखी कमरे में खड़ी हुए ही कच्ची सड़क पर गाड़ी के पीछे की धूल उड़ते हुए देखती रही | आखिर भानु के वापिस लौटने का दिन आ ही गया | माँ ऎसी व्यस्त हो गईं जैसे बेटी को पहली बार ससुराल भेज