बेतरतीब गलियों के शहर जैसलमेर में एक पतली सी गली के मध्य स्थित, एक घर में एक लड़की 'बिंदु' खाने की तैयारी कर रही थी। तभी उसके पापा जो अभी ही घर आये थे और दरवाजा खुला देखकर बिंदु.....बिंदु कहके उसे बुला रहे थे। "हाँ जी पापा !" बिंदु रसोई में से ही बोली । "कहाँ हो तुम? और ये दरवाजा खुला कैसे है?" विक्रम चिंता और क्रोध के मिलेजुले स्वर में बोले। "रसोई में ही हूँ पापा। और अभी सारिका आंटी आई थी उन्होंने ही खुला रख दिया होगा। ""तो तुम्हें देखना चाहिए था न!""अभी ही तो गई है