कुंवारा बाप।

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नई उम्र,18से22 की अवस्था। सरिर अपने विकास पर जोर लगा रही थी। मै बालपन से बढ़ती हुई उम्र में परिवर्तित हो रहा था। नए सपने, इक हम की भावना, अटूट जोश, असमान्य तेज। जिस पर किसी की नजर पड़ते ही मोहित कर ले। अपने काम से कम राहेना,अपने को अच्छा से अच्छा बनाने का प्रयास करना। लेकिन कौन जानता था की बढ़ती उम्र के साथ हर चीज बढ़ती है। और मै कब बड़ा हो गया।पता ही नहीं चला। उन दिनों मै घूमने गया था। और वो घूमना,मेरा इक इतिहास के इक अध्याय का निर्माण किया।मै अपनी मस्ती में मगन था।