गर्मियों की छुट्टियाँ भोर हो आयी थी । ट्रेन धीरे धीरे जंक्शन की ओर बढ़ रही थी । इसी तरह कुछ ४५ साल पहले यह ट्रेन रेंगते हुए सुबह पटना पहुँच गयीथी। पापा का चेहरा मुझे याद आ गया । सब हालाँकि सामान्य सा ही लग रहा था पर इस बार हम नाना जी के पास नहीं बल्कि ताऊ जीके घर रुकेंगे । हम दोनो भाइयों को इस से मतलब नहीं था। ट्रेन का सफ़र खतम हुआ था और हमेशा की तरह हम छुट्टियाँ बिताएँगे ।पतंग उड़ाना , छत पर बैठ कर आम खाना और कॉमिक्स पढ़ने की कल्पना कर