एक बेवकूफ - 9

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हाँ, मैं अँधा हूँ। एक धमाके में मेरी आँखों की रौशनी जाती रही। देश सेवा के जूनून में बढ़ोतरी हो रही थी पर नियमों ने करने नहीं दी। फिर रिटायर होकर लाइफ एन्जॉय कर रहा हूँ और कर भी क्या सकता हूँ।" कहते कहते उनकी शक्ल पर उदासी आ गयी। "अरे जब से तुम लोग आये हो कुछ लिया ही नहीं, अरे शकुंतला, बच्चों के लिए कुछ चाय कॉफी नाश्ता लाओ।" गृहिणी अच्छी और समझदार थी पहले से ही रेडी थी तो अगले 5 मिनट में प्लेटें सज गयी। चूँकि उन लोगों को काफी देर रुकना था तो खाने पीने