उत्कृष्ट कलात्मक सांकेतिकता से किर्च किर्च होते मानव मन की व्यथा

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नीलम कुलश्रेष्ठ 'सिलवटें 'विकेश निझावन जी के कहानी संग्रह की एक एक सिलवट मैं पलट क्या रहीं हूँ एक तीखे दर्द से गुज़र रहीं हूँ या उस साँकेतिक भाषा से झटके खा रहीं हूँ जो सिर्फ़ किसी पात्र, किसी समस्या पर दूर से इशारा भर करती है. आप ये भी कह सकतें हैं कि किसी की ज़िंदगी को ये भाषा उस पर पड़े पर्दे को ज़रा सा खिसका कर और तुरंत बंद कर उस पात्र की या स्थिति की ज़रा सी झलक से या सिर्फ़ दो तीन संवादों से सारी की सारी तकलीफ़, संघर्ष भरी कहानी कह जाती है। आप