आज वो फिर मिली। इतने सालों बाद, उसी पुराने बरगद के नीचे, यूं अचानक। मैं तो लाइब्रेरी से निकल कर किताब की दुकान पे कोई किताब देख रहा था। तभी एक जानी पहचानी आवाज़ मेरे कानों तक पहुंची। मैंने पलट कर देखा तो सोंच में पड़ गया। वही चेहरा, वही हंसी। क्या ये वही है! अभी मैं इसी उधेड़ बुन में पड़ा था कि तभी उसने पास आ कर कहा, "और मिस्टर! देखो मैं ने एक बार फिर तुम्हें ढूंढ लिया।" और खिलखिला कर हंस पड़ी। उसकी हंसी सुनकर ऐसा लगा जैसे मैं किसी नींद से जागा। मुझे समझ में