कोट - २१

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कोट-२१ कोट के पास एक पत्र पड़ा था। मैंने उसे उठाया उस पर पड़ी धूल को झाड़ा। साथ में एक पन्ने में लिखा था मैंने जो,वह भी साफ-साफ दिख रहा था-जब सपना टूटता है प्यार काधड़ाम सेजब सपना कटता है प्यार काकड़ाक से,जब सपना गिरता है प्यार काधड़ाम सेजब सपना घिसता है प्यार काधीरे-धीरे,धीरेघर खाने को दौड़ता है शनैः-शनैः, शनैः।"भोर जब सन्नाटा लाता हैप्यार में आती है खटास,रास्ते टूटते हैं जहाँ-तहाँ सेजैसे बाघ खा जाता है बकरी कोप्यार का नहीं दिखता नामोनिशान।"चिट्ठी में लिखा था," मौसम अच्छा है। ठीक-ठाक नौकरी अभी तक नहीं मिली है। मन नहीं लग रहा है।