कोट - २०

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कोट उतार मैं अतीत में चला गया -मेरा गाँव कभी हँसता,कभी मुस्कराता। कभी मौन हो जाता माना पृथ्वी पर हो ही नहीं,कटा- छँटा,एकान्त। अकेला नदियों कल-कल के बीच। लड़ता-झगड़ा तो भी दूर-दूर तक किसी को पता नहीं चलता। इतिहास बनाता और वहीं रह जाता। श्मशान पर ५-६ लोग थे। पता करने पता चला कि एक घसियारी घास लाते समय पहाड़ की पगडण्डी से गिर गयी और उसकी मृत्यु हो गयी थी। तीन छोटे बच्चे थे उसके। श्मशान की अग्नि, आग नहीं होती, अग्नि देवता कहलाती है।सुबह लगभग दस बजे गायों को जंगल में चरने छोड़ने जा रहा था, दूर नदी