प्रेम का अत्याचार

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बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय लोगों की धारणा है कि केवल शत्रु अथवा स्नेह-दया-ममता से शून्य व्यक्ति ही हमारे ऊपर अत्याचार करते हैं। किंतु इनकी अपेक्षा एक और श्रेणी के गुरुतर अत्याचारी हैं, उनकी ओर हमारा ध्यान सब समय नहीं जाता। जो प्रेम करता है, वही अत्याचार करता है। प्रेम करने से ही अत्याचार करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। अगर मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ, तो तुमको मेरा मतावलंबी होना ही पड़ेगा, मेरा अनुरोध रखना पड़ेगा। तुम्हारा इष्ट हो या अनिष्ट, मेरा मतावलंबी होना ही पड़ेगा। हाँ, यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि जो प्रेम करता है, वह तुम्हें जानबूझ