बंद खिड़कियाँ - 8

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अध्याय 8 अरुणा आराम से गाड़ी चला रही थी। सरोजिनी बाहर देखती हुई अपने विचारों में डूबी हुई बैठी थी। "क्यों दादी, गहरी सोच में हो?" धीरे से मुस्कुराते हुए पूछा। "अरे अब मुझे क्या सोचना है!" साधारण ढंग से सरोजिनी बोली। "क्यों नहीं सोचना चाहिए? क्या काम है आपके पास?" "वो ठीक है!" कहकर सरोजिनी हंसी। "मेरी सभी यादों को सोच नहीं कह सकते। कुछ खास काम किए हुए लोगों को सोचना चाहिए। मेरी सारी सोच एक सपने जैसी है। जो बिना अर्थ, बेमतलब की ।" अरुणा हंसी। "वह बिना अर्थ बेमतलब की सोच क्या है वही बता दीजिए!"