माखनलाल जी ने अपना खाना फौरन ही खतम किया और उसी कमरें के कोनें में बिछे अपने बिस्तर पर रजाई ओढ़कर चुपचाप लेट गए,सम्पदा ने उनकी झूठी थाली उठाकर आँगन में रखें जूठे बर्तनों के साथ रखी,अँगीठी में थोड़ा पानी गरमाया और बर्तन धोने बैठ गई,रात को बर्तन धोकर ना रखो तो और काम बढ़ जाता है सुबह के लिए,कुछ ही देर में वो बरतन धोकर आई और अँगीठी के सामने बैठकर स्वेटर बुनने लगी,क्योंकि भामा अभी भी पढ़ रही थी,जब तक वो जागती है तो सम्पदा भी उसके साथ जागती रहती है,प्रबल भी सो चुका था और सियाजानकी भी