सुखी संसार...

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शाम का समय,समुद्र के भीतर डूबता हुआ लाल सूरज,चिड़ियों की चहचहाहट और साथ ही समुद्र में उठती लहरों का शोर मन को विह्वल से किए जाता है,नारियल के लम्बे लम्बे वृक्ष एकदूसरे को छूने का प्रयास कर रहे हैं,जैसे कि आपस में कह रहे हों..प्रिऐ!निकट तो आओ जरा,उस पर ऐसा सुन्दर सुहावना वातावरण लेकिन शंकर उदास सा समुद्र के किनारें बनी अपनी झोपड़ी में बैठा किसी की राह देख रहा है,तभी उसे दूर से महुआ आती हुई दिखी,महुआ झोपड़ी के भीतर घुसी ही थी कि शंकर ने उसके ऊपर सवालों की बौछार कर दी और उससे बोला.... महुआ! कहाँ गई