वो और मैं...

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चौधराइन लीलावती को अपने पुरखों की पुरानी हवेली बहुत प्यारी थी,उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी ग़रीबी में काटी, जीवन-भर संघर्ष किया ,दो वक्त का खाना नहीं मिला परिवार को लेकिन उन्होंने उस हवेली को अपने हाथों से बाहर जाने नहीं दिया था,ना जाने कितने खरीदार उसे मुँहमाँगे दामों पर खरीदने आएं फिर भी लीलावती झुकीं नहीं,वो सबसे ये कहा करती कि चाहे घर कितना भी पुराना क्यों न हो, किन्तु फिर भी ये हमारे पुरखों की शान है, आख़िर वे भी उसी में पले थे और ये हमारी धरोहर है जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, उन्होंने इसी हवेली में घुटनों