कुछ ही समय में सोनमयी सुकेतुबाली के समक्ष थीं,सुकेतुबाली ने उससे कुछ प्रश्न पूछे...... सोनमयी! क्या तुमने किसी से सहायता लेने की आवश्यकता नहीं समझी..... महाराज!मैनें अत्यधिक प्रयास किया,वहाँ उपस्थित व्यक्तियों को सहायता हेतु पुकारा किन्तु मेरी किसी ने ना सुनी,हाय! मेरी सखी! उस घड़ियाल ने मेरी सखी को अपने मुँख में ऐसे भरा जैसे कि कोई दैत्य किसी कोमल सी मृगी को अपने मुँख में भर रहा हो ,वो स्वयं को छुड़ाने का प्रयास भी करती रही परन्तु उस घड़ियाल ने उसे छोड़ा ही नहीं, वो वीभत्स दृश्य देखने से पहले ही मैं नेत्रहीन हो जाती तो अच्छा होता,किन्तु