अपंग - 24

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24 वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई | कमरा देखकर भानु की आँखें फिर एक बार भर आईं | माँ ने जैसे कमरे की एक-एक चीज़ इतनी साफ़ करवाकर, सँभालकर रखवाई हुई थी जैसे सब कुछ नया हो | अपने कमरे की लॉबी में खड़ी रहकर वह बगीचे की सुगंधित पवन को फिर से अपने फेफड़ों में भरने लगी | उसे महसूस हो रहा था कि कमरे की छुअन को, उसकी सुगंध को पूरी अपने भीतर उतार ले | रात भर वह अपनी किताबें, रेकॉर्ड्स, पेंटिग्स, कपड़ों को सहलाती रही | उन्हें छूती रही। गले लगाती रही | उसे