राज-सिंहासन--भाग(१०)

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ज्ञानश्रुति तो मार्ग में सोनमयी से वार्तालाप करते हुए आया किन्तु सोनमयी अत्यन्त मौन रहीं,वो केवल ज्ञानश्रुति के मुँख की भंगिमाओं को अपने हृदय के भीतर विलय करती रही,एक ही क्षण में सोनमयी का जो ज्ञानश्रुति पर क्रोध था,वो समाप्त हो गया,कदाचित वो क्रोध अब प्रेम में परिवर्तित हो चला था।। देवी सोनमयी! आप भी तनिक कुछ वार्तालाप कीजिए,तो इतनी पीड़ा नहीं होगी,ज्ञानश्रुति बोला।। राजकुमार! मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूँ,सोनमयी बोली।। मुझे ज्ञात है कि आपको असहय पीड़ा हो रही है,किन्तु यदि आप बात करेंगीं तो आपका ध्यान घाव की ओर नहीं जाएगा इस प्रकार कुछ