प्रातःकाल हो चुकी थी परन्तु अभी तक सूर्य की किरणों ने अपनी छटा नहीं बिखेरी थी वो बस इस प्रतीक्षा में थी कि सूर्य उन्हें कब आदेश दे एवं वे अपने प्रकाश को इस संसार में प्रसारित कर दें,अभी आकाश पर चन्द्रमा का ही राज था,वृक्षों पर बैठे खगों का कलरव सुनाई दे रहा था,वन के वृक्षों के पत्रों पर अभी भी पारदर्शी ओस की बूँदें नृत्य कर रहीं थीं।। सर्वप्रथम केतकी जागी एवं सोनमयी की कुटिया के निकट आकर बोली..... सोनमयी....ओ सोनमयी...पुत्री! स्नान का समय हो गया है,नीलमणी को स्नान हेतु सरोवर के निकट ले जाओ अन्यथा भीड़ इकट्ठी