अय्याश--भाग(३८)

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सत्या ना चाहते हुए भी उन मोहतरमा के संग उनके रिजर्वेशन वाले डिब्बे में बैठ तो गया था लेकिन उसे बहुत संकोच हो रहा था,कुछ ही देर में रेलगाड़ी चल पड़ी और टीसी टिकट जाँचने आया,तब वें खातून बोलीं.... जनाब! ये भाईजान भी हमारे संग ही है,आप इनका टिकट बना दीजिए,जितने रूपऐं लगेगें तो हम आपको दे देते हैं,खुदा के लिए इन्हें परेशान मत कीजियेगा।। मोहतरमा!मुझे भला क्या परेशानी हो सकती है आप कितने भी जन अपने डिब्बे में बैठा लीजिए,मुझे टिकट के रूपऐं मिल रहे हैं ना!तो आप इत्मीनान रखिए,मैं इन साहब का टिकट भी अभी बनाएं देता हूँ