दो मुँह हँसी ’’ऊँ ऊँ,’’ सुनयन जगा है । बिजली की फुर्ती से मैं उसके पास जा पहुँचता हूँ । रात में उसे कई बार सू-सू करने की जरूरत महसूस होती है । जन्म ही से उसकी बुद्धि दुर्बल है और इधर एक साल से तो उसका जीवन-प्रवाह भी बहुत दुर्बल हो गया है । उसके सभी कामकाज अब उसके बिस्तर पर ही मुझे निपटाने पड़ते हैं । उसके इस इक्कीसवें साल में । यहीं मैं उसे खाना खिलाता हूँ, स्नान कराता हूँ । पोशाक पहनाता हूँ । यहाँ तक कि उसके शौच तक का सुभीता भी मुझे यहीं उसके