घर में हुए इस कारनामे को एक महीना गुज़र चुका था। लेकिन बिगड़ी हुई व्यवस्था अभी तक ठीक नहीं हुईं थी। और इस बिगड़ी हुई व्यवस्था की उथल-पुथल में निशा बड़ी शांत रहने लगी थी। उसका कॉलेज तक छूट चुका था। और शेखर के घर दूध लेकर जाना तो दूर की बात; बल्कि, घर से बाहर जाने वाले दरवाज़े और उसके पास की खिड़की की तरफ जहाँ से वो शेखर को देखती थी। वहाँ पर भी जाने की पाबंदी लगा दी गई थी। घर के बाहर भी कोई दुनिया है। इसका आभास तो जैसे उसके लिए खत्म ही हो चुका