रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 10

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस्तों के पिता को देख कर कभी न कभी तुझे भी तो उनकी याद आती ही होगी। अपनी मां का अकेलापन और उदासी भी तो तुझे कुछ कहती ही होगी। मेरे मन में आया कि क्यों न मैं तुझे उनकी याद दिलाऊं। उनके नाम का सहारा लूं। शायद तू अपने परिवार