रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 5

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते हुए बिल्कुल अनजान बच्ची ही बनी हुई थी पर मम्मी के साथ तेज़ी से बढ़ने लगी। ये दुनिया भी खूब है। जो मुझे दुनिया में ले आया उसने कुछ नहीं दिया और जिन्होंने मुझ पर तरस खाकर मुझे अपनाया उन्होंने मेरे लिए तमाम खुशहाली के रास्ते खोल दिए।