1 FEB. 2022 AT 01:35“एक समय था जब मैं आत्म अनुभूति नहीं होने पर परमात्मा को जानता नहीं था वरन इसके उसे मानता ही था क्योंकि यह सिद्ध नहीं हुआ था कि परमात्मा हैं कि नहीं परंतु हाँ! यह अवश्य सिद्ध हो गया था कि यदि वह नहीं भी हैं तो भी उसे या उसकी उपस्थिति को माननें में यथा अर्थों में अनंत यानी सभी का हित हैं अतः यदि वह नहीं भी हैं तो भी उसकी उपस्थिति को मानना ही चाहियें; चाहें उसकी उपस्थिति को मानना अंधविश्वास यानी मेरा अज्ञान ही क्यों न हों। अज्ञान यानी भृम में न