यहां... वहाँ... कहाँ ? - 3

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अध्याय 3 सातवीं मंजिल के छत के किनारे खड़े होकर नीचे देख रहा था गोकुलम। नीचे बहुत से पत्थर दिखाई दे रहे थे। सर के बल गिरे तो बस..... तुरंत मृत्यु। सूर्य की लालिमा अब 50% दिखने लगा.... समुद्र के लहरों में लालिमा चिपक गई। 'नीचे कूद जाना ही चाहिए'-इरादा कर जैसे पैर उठाया उसी क्षण- उसी क्षण उसके शर्ट में से मोबाइल का रिंगटोन बजा। पॉकेट में से धीरे से निकाला। डिस्प्ले में एक नया नंबर। 'यह कौन?' गोकुलम सोच कर सेल फोन को कान में लगाया। "हेलो!" दूसरी तरफ से एक आदमी की आवाज घबराहट के साथ सुनाई