तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 19

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श्राप दंड - 8" मेरी नींद जब खुली , उस वक्त सवेरा है या शाम इस बारे में पता ही नहीं चला। कमरे के अंदर से बाहर का परिवेश बताना संभव नहीं है। दाहिने तरफ नजर पड़ते ही मैंने देखा , बूढ़ी महिला आसन पर बैठकर हल्का हल्का डोल रही थी। तथा इसके साथ ही वह बूढ़ी महिला ना जाने क्या बड़बड़ा भी रही थी। उनके सामने आखिर वो सब क्या है ? मैं भी धीरे-धीरे बिस्तर पर उठकर बैठ गया। उठकर बैठते ही सबकुछ स्पष्ट हुई। मैंने जो कुछ भी देखा था हूबहू तुमको तुमको बता रहा हूं मन