तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी - 18

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श्राप दंड - 7" वह दिन भी बीत गया। ताँबे के बर्तन में बर्फ डालकर पानी होने के बाद उससे मैं अपनी प्यास बुझाता। आसपास केवल पत्थर और बर्फी है। रात बढ़ने के साथ-साथ ठंडी भी बढ़ती गई। यहां अक्सर ही कभी-कभी बर्फ का तूफान आता है। अगर उस बर्फ के तूफान में कोई आ गया तो उसकी मृत्यु तय है। एक पत्थर पर टेंक लगाकर मैं बैठा हुआ था। आज चंद्रमा की रोशनी नहीं है। ठंडी हवा कभी तेज तो कभी धीमे प्रवाहित होती। जहां पर बैठा हूं वहां से पश्चिम की तरफ देखते ही मेरी आंख को थोड़ा