स्त्री का सच

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स्त्री जब तक गुलाम बनी रहती है, तब तक पुरूष की प्रिय बनी रहती है पर जब वह अपनी बुद्धि,तर्क के सहारे अपने वजूद को साबित करती है ।अपने होने को दिखती है ,पुरूष उसका दुश्मन हो जाता है |कारण साफ है कि स्त्री के इस कदम से उसकी सत्ता खतरे में पड़ जाती है। वह उस स्त्री का तिरस्कार करने लगता है ।उसे पीड़ा पहुँचकर आनंद का अनुभव करने लगता है |परपीड़क तो पुरूष हमेशा से रहा है और इससे कभी ग्लानि का अनुभव भी नहीं करता पुरूष अपनी अक्षमता ,निकम्मेपन और तर्कहीनता को कूरता के आवरण में छिपाता