भाईबन्द

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’प्रभा जी हैं ?’ दरवाज़े की घंटी बजाने वाला रमेश मिश्र है । लड़की को पूछ रहा है । उसके पीछे एक ठेले पर पंजर में से एक फ्रि़ज झांक रहा है । *नहा रही है’, मैं खांसती हूं । दमे की पुरानी मरीज़ हूं मैं । ’फ्रिज़ कहां रखवाएं ?’ ठेले वालों को जाना है...। ’रोक लो उन्हें । नहा कर उसे आ जाने दो । वही आकर बताएगी, फ्रिज़ उसे लेना है या नहीं । और अगर लेना है तो फिर रखवाना कहां है ।’ घर के माल-मते और उसके रख-रखाव में मेरी दखलन्दाज़ी लड़की को सख़्त नापसन्द