शापित ( उल्टे पैरों वाला गाँव )

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बरसात होकर बन्द हो चुकी थी । इस ठंडे माहौल में भी गौरव पसीने से लथपथ डरते हुए ज्यों ज्यों आगे बढ़ता जा रहा था । वैसे वैसे उस वीरान जगह का माहौल और भी रहस्यमयी होता जा रहा था । सूखे पत्तों की चर चर , उल्लू और झींगुरों की आवाज़ वातावरण को और भी भयावह बना रही थी । शाम ढलने को थी । घनी झाड़ियों में से सूर्य का प्रकाश शने: शने: लुप्त होते हुए अंधकार गहराता जा रहा था । दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात । हिम्मत जुटाकर वह चलता रहा ।