स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार

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मैं हुआ करती थी /एक ठंडी पतली धारा /बहती हुई जंगलों ,पर्वतों और वादियों में /मैंने जाना कि ठहरा हुआ पानी /भीतर से मारा जाता है /जाना कि समुद्र की लहरों से मिलना धाराओं को नयी जिंदगी देना है /न तो लंबा रास्ता न अंधेरे खड्ड न रूक जाने का लालच /रोक सके मुझे बहते जाने में /अब मैं जा मिली हूँ अंतहीन लहरों से /संघर्षों में मेरा अस्तित्व है और मेरा आराम है मेरी मौत |प्रत्येक विमर्श अपने समय में तर्कों ,अध्ययनों ,मनन और चिंतन की प्रक्रिया से गुजरता है परंतु व्यवहार का विमर्श विचार के विमर्श से अलग