भारतीय सिनेमा में स्त्री की छवि

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आजादी से पहले बाल-विवाह,बेमेल विवाह ,पर्दा-प्रथा और अशिक्षा पर केन्द्रित कई फिल्में बनाई गईं |दुनिया ना माने ,अछूत कन्या,आदमी ,देवदास ,इन्दिरा एम ए ,बालयोगिनी आदि फिल्में स्त्री –जीवन की विडंबनाओं पर केन्द्रित थीं |आजादी से पहले बनाई गयी ज्यादातर फिल्में सामाजिक विषयों पर थीं और उनका उद्देश्य समाज को बदलना था |लेकिन आजादी के बाद फिल्मों का लक्ष्य सामाजिक उत्थान से ज्यादा पैसा कमाना रह गया |आजादी की बाद की फिल्मों में स्त्री समस्या की जगह दाम्पत्य –जीवन में स्त्री की शुचिता,पतिव्रत व आदर्श पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा |स्त्री को धैर्य के साथ अत्याचार सहते पति-को परमेश्वर मानकर पूजा करते दिखाने का जैसे फैशन –सा हो गया |यदि पति-पत्नी