स्त्री कविता की दुश्वारियां

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कविता कविता होती है ,उसे स्त्री या पुरूष कविता के रूप में बांटकर नहीं देखना चाहिए ,यह तर्क अक्सर विद्वान देते रहते हैं |वे भूल जाते हैं कि इसी तर्क के कारण स्त्री कविता का सही आकलन आज तक नहीं हो पाया है |स्त्रियाँ हमेशा से कविताएँ लिखती रही हैं,पर उन कविताओं का सही मूल्यांकन अभी तक नहीं हुआ |उनकी कविताओं को हिंदी साहित्य के इतिहास में सही जगह नहीं मिली|संकलित न होने के कारण ढेर सारी कविताएँ कहीं खो गईं,जो अब बड़े प्रयासों के बाद धर्माश्रय,राज्यश्रय तथा लोकाश्रय माध्यम से मिल रही हैं |प्रश्न है कि क्यों साहित्य के