हमनशीं । - 7

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.....बुझे मन से रफ़ीक़ घर लौटा और बिना किसी से कुछ कहे सीधे अपने कमरे की तरफ चला गया। रफ़ीक़ को घर लौटा देख चिंटू ने आवाज़ दिया। पर रफ़ीक़ न पलटा और अपने कमरे में जाकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। तभी किसी ने रफीक़ के कमरे का दरवाजा खटखटाया। “देखो, चिंटू मियां। आज मुझे खेलने या कहीं घुमने का बिलकुल मूड नहीं। तुम अपनी खालाजान के पास जाकर खेलो।” – तकिये में अपना मुंह दबाए रफ़ीक़ ने बंद कमरे से ही आवाज़ लगाते हुए कहा। “रफ़ीक़ मियां, मैं हूँ। दरवाजा तो खोलो। क्या हुआ, मुझे बताओ। ऐसी