औरत (एक दृष्टि)

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औरत को हीन मानना समाज के संस्कारों में रच-बस गया है ,दिलो-दिमाग पर हावी है जहां से उसे खुरच कर हटाना और इसी खुरची हुई जगह पर नयी इबारत लिखना आसान नहीं है ,इसके लिए वक्त भी बहुत चाहिए |आप उसे शूद्र –गंवार –ढ़ोर –पशु समझकर पीटिए या उसमें देवता का निवास है ,इसलिए उसकी पूजा कीजिए |आज स्त्री जहां खड़ी है ,वहाँ से निकलने में पता नहीं उसे कितना वक्त लगेगा |जानबूझकर हो या अनजाने में ,मर्द में एक उच्चता की भावना बचपन से ही विकसित करा दी जाती है और बड़े होने पर जब स्त्री समानता की बात