पारुल जब देखती है तो सामने अविनाश खड़ा था.....। उसे देखती ही मानों पारुल का गला डर के मारे सुख रहा था। क्योंकि वह समझ नहीं पा रही थी... की क्या करे!? कैसे अविनाश को अंदर आने से रोके!?। पारुल दरवाजे पर ही बुत बने खड़ी थी.... । तभी अविनाश उसे हड़बड़ाते हुए कहता है..। अविनाश: तुम ठीक हो!? माई ने मुझे अभी कहां की तुम दरवाजा नहीं खोल... रहीं और कुछ आवाज भी आ रही है.... कमरे से!? ।पारुल: ( अविनाश को सिर को हां में हिलाते हुए जवाब देती है। ) अविनाश: ( तभी अविनाश का ध्यान पारुल