अनजान रीश्ता - 95

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पारुल पूरा दिन बस पूरे घर के चक्कर लगाती रही... बस यहां से वहां... वहां से यहां... । घर था तो बहुत ही प्यारा लेकिन एक इंसान के लिए इतना बड़ा घर यानी की मकड़ी के जाले के बराबर था। वह सोच ही रही थी की अविनाश कभी अकेला महसूस नहीं करता... क्योंकि इतने बड़े घर में अगर दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान भी रहे तो वह भी अकेला महसूस करने लगेगा । पता नहीं कैसे यह इंसान रह पाता है। तभी पारुल माई के पास किचन में बैठती है। पारुल के लाखो दफा कहने पर माई उसे मदद नहीं