पारुल की जब आंख खुली तो वह बेड पर देखती है, लेकिन अविनाश नहीं था। वह फिर सीधा बालकनी की ओर देखती है! कहीं वह फिर से... लेकिन वहां पर भी नहीं था । वह कमरे का दरवाजा खोलते हुए! हॉल की ओर नजर डालती है की शायद नीचे नाश्ता कर रहा हो!? लेकिन पूरे हॉल में भी उसका अता-पता नहीं था। इतने सालो बाद पहली बार वह अविनाश के लिए फिक्रमंद हो रही थी। जो की शायद उसे आभास नहीं हुआ थी की वह क्या कर रही थी। वैसे भी इंसान कितना भी ढोंग कर ले लेकिन अगर वह